इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज

इंटैक एक एनजीओ है जिसकी स्थापना वर्ष 1984 में दिल्ली में हुई थी इसको भारत सरकार तथा यूनेस्को से धरोहर संरक्षण हेतु मान्यता प्राप्त है वर्तमान देश भर में इसके 202 अध्याय हैं तथा एक विदेश में बेल्जियम में है इसका उद्देश्य देशभर में फैले अपने अध्याय के सदस्यों की सहायता से देशवासियों को अपने राष्ट्रीय विरासतों के प्रति जागरूक बनाना एवं उनके संरक्षण हेतु उनके दायित्व को समझाना है। इंटैक का लोगो उत्तर प्रदेश के शाहाबाद जिले की गंगा घाटी से प्राप्त दुर्लभ वस्तुओं को ख़जाने से ली गई तांबे की एक कलाकृति हैं। यह आदि मानव (1700-1800 वर्ष ईशा पूर्व) की सर्जनात्मक कलाशक्ति का परिचायक है और मनुष्य के रूप में ईश्वर की कल्पना साकार करता है।

विरासत को संक्षेप में समझे तो आपके परदादा जी की तलवार आपके लिए विरासत हो सकती है लेकिन राष्ट्रीय विरासत नहीं, जब तक कि उनका राष्ट्रीय स्तर का कोई योगदान न रहा हो | राष्ट्रीय विरासत पिछली पीढ़ियों द्वारा परंपरागत रूप से प्रदत्त सम्मान, गर्व एवं साहस का प्रतीक है विरासत की विभिन्न श्रेणियों पर इंटैक अपने विभागों द्वारा कार्य कर रहा है।

 

Events & Update

भारतीय सांस्कृतिक निधि गोरखपुर अध्याय के वेबसाइट का लोकार्पण इंटैक के चेयरमैन रिटायर्ड मेज़र जनरल एलo केo गुप्ता AVSM द्वारा होटल विवेक में दिनांक 18 फ़रवरी 2021 सायं 7:30 बजे।



चेयरमैन इंटैक, रिटायर्ड मेज़र जनरल एलo केo गुप्ता द्वारा गोरखपुर के विरासत क्षेत्रो का भ्रमण दिनांक 18 फ़रवरी 2021 से 20 फ़रवरी 2021 तक |


शिल्प/प्राकृतिक विरासत

ऐतिहासिक स्थल, पुराने किले धार्मिक स्थान एवं मानव निर्मित गुफाएं आदि इस श्रेणी में आते हैं। पर्वत, प्राकृतिक गुफाएं, जंगली वन क्षेत्र जलस्रोत, दुर्लभ पशु पक्षी एवं विलुप्त प्राय जड़ी बूटियां।

वस्तु एवं समुदाय विरासत

शिल्पकारों तथा जुलाहा, ठठेरा, कुम्हार, लोहार, बढ़ई, बांसफोड़ आदि समुदायों द्वारा परंपरागत रूप से बनाई गई वस्तुओं तथा कलात्मक खिलौने, उपकरण आदि|

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत

धार्मिक अनुष्ठानों पर कही जाने वाली लोक कथाएं, नृत्य एवं गायन जन्म मृत्यु एवं अन्य मांगलिक अवसरों के रीति-रिवाज सांझी, कोहबर आदि के चित्र मौखिक रूप से गाए जाने वाले पारंपरिक गीत, लोकोक्ति एवं मुहावरे ।


Circles and Heritage

गोरखनाथ मन्दिर

गोरखनाथ मन्दिर, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। बाबा गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरखनाथ मन्दिर के वर्तमान महन्त श्री बाबा योगी आदित्यनाथ जी है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ एक माह चलने वाला विशाल मेला लगता है जो 'खिचड़ी मेला' के नाम से प्रसिद्ध है

इमामबाड़ा

गोरखपुर में यहां मौजूद है सोने-चांदी की ताजिया, 300 साल पुराना है इसका इतिहास ... ऐसी ही एक धरोहर शहर के मियां बाजार क्षेत्र में स्थापित इमामबाड़ा है जहां रखे सोने और चांदी के आदम कद ताजिया की पहचान दुनियाभर में है। दुनिया के और किसी इमामबाड़े में आदम कद के सोने और चांदी की ताजिया मौजूद नहीं है

हनुमानगढ़ी

महानगर के लाल डिग्गी पार्क के पश्चिम की ओर हावर्ड बांध पर थोड़ी दूर पर बाय तरफ नीचे के रास्ते से इस प्राचीन विरासत में पहुंचा जा सकता है 1819 में इस विरासत का निर्माण किया गया था परंतु जमाने के उतार-चढ़ाव ने इसे नष्ट कर दिया था इसकी पुरानी लकड़ी का विशाल खूबसूरत द्वार जर्जर हो गया था जिसे कुछ दिनों पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है|

गोरखपुर रेलवे जंक्शन

रेलवे द्वारा भारतीय रेलवे के सबसे स्वच्छ रेलवे स्टेशनों की सूची जारी कर दी है. राजस्थान के जोधपुर और मारवाड़ रेलवे स्टेशन ने इसमें पहला स्थान हासिल किया है. वहीं, दुनिया के सबसे लंबे रेलवे प्लेटफॉर्म के मामले में देश के प्लेटफॉर्म की कोई सानी नहीं है. उत्तर प्रदेश का गोरखपुर रेलवे रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म दुनिया का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म है| विश्व का सर्वाधिक लम्बा प्लेटफॉर्म यहीं पर स्थित है।

गीता प्रेस गोरखपुर

गीताप्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के शेखपुर इलाके की एक इमारत में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है। इसमें लगभग २०० कर्मचारी काम करते हैं।

सूर्यकुंड धाम

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के सूरजकुंड धाम में हर साल की तरह इस साल भी दीपावली के दूसरे दिन रविवार को दीपोत्सव का आयोजन किया गया। संस्कार भारती द्वारा आयोजित इस आयोजन में सरोवर पर हजारों दीपों ने जमीन पर सितारों के उतरने का अहसास कराया।

मोती जेल

मोती जेल आज भले ही आबाद हो गया है लेकिन जंग-ए-आजादी के दौरान इधर आने वालों के रूह कांप जाते थे। यह ठीक-ठीक कोई नहीं बता पाता। सन् 1857 के बाद इस इमारत का उपयोग सरकारी जेलखाने के रूप में किया जाता था|

मगहर सुरंग

सत्रहवीं शताब्दी में संतकबीरनगर के संस्थापक एवं चकलेदार यानी प्रशासक काजी खलीलुर्रहमान ने खलीलाबाद से मगहर तक सुरंग का निर्माण 1680 में कराया था। ... यह सुरंग 9 किमी लंबी और 20 फीट चौड़ी और 10 फीट ऊंची है|


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